प्रसंग: <br /><br />प्रेम-गली अति सांकरी, तामें दो न समाहिं।<br />जब मैं था तब हरि नहीं, जब हरि है मैं नाहिं।<br />~कबीर साहब <br /><br />~ प्रेम तो दो के बीच होता है, एक में प्रेम कैसे संभव है?<br />~ प्रेम ओर ज्ञान में कौन पहले आता है?<br />~ कैसे पता चले कि अहंकार को प्रेम समझ में आ गया है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते